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उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा से भारी तबाही, राज्य सरकार ने केंद्र से माँगा 5700 करोड़ का आर्थिक पैकेज

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उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा से भारी तबाही, राज्य सरकार ने केंद्र से माँगा 5700 करोड़ का आर्थिक पैकेज

सबसे ज्यादा क्षति सड़कों और पुलों को, लोक निर्माण विभाग को अकेले 1164 करोड़ का नुकसान

देहरादून। प्रदेश में इस साल प्राकृतिक आपदाओं ने भारी तबाही मचाई है। आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक अब तक 5700 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान आंका गया है। राज्य सरकार ने विस्तृत रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेजते हुए केंद्र से विशेष आर्थिक पैकेज की मांग की है। आपदा से सबसे ज्यादा असर सड़क और पुलों पर पड़ा है, जिससे लोक निर्माण विभाग को ही 1164 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा।

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आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि 5702.15 करोड़ रुपये की विशेष सहायता केंद्र से मांगी गई है। इसमें जहां क्षतिग्रस्त परिसंपत्तियों के पुनर्निर्माण के लिए 1944.15 करोड़ रुपये की आवश्यकता है, वहीं भविष्य में आपदा से होने वाले संभावित नुकसान को रोकने और अवस्थापना संरचनाओं को स्थिर करने के लिए 3758 करोड़ रुपये का अनुरोध किया गया है।

विभागवार नुकसान
प्राकृतिक आपदा से विभिन्न विभागों को सीधा नुकसान पहुंचा है। इनमें लोक निर्माण विभाग को 1163.84 करोड़, सिंचाई विभाग को 266.65 करोड़, ऊर्जा विभाग को 123.17 करोड़, स्वास्थ्य विभाग को 4.57 करोड़, विद्यालयी शिक्षा विभाग को 68.28 करोड़, उच्च शिक्षा विभाग को 9.04 करोड़, मत्स्य विभाग को 2.55 करोड़, ग्राम्य विकास विभाग को 65.50 करोड़, शहरी विकास विभाग को 4 करोड़, पशुपालन विभाग को 23.06 करोड़ और अन्य विभागों को लगभग 213.46 करोड़ का नुकसान हुआ है।

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5 महीने में 79 मौतें, 90 लापता
रिपोर्ट के अनुसार, 1 अप्रैल से 31 अगस्त 2025 तक आपदा से 79 लोगों की मौत, 115 लोग घायल और 90 लोग लापता हुए हैं।

हजारों मकान क्षतिग्रस्त
आपदा में 238 पक्के और 2 कच्चे मकान पूरी तरह ध्वस्त हो गए, जबकि 3237 मकानों को आंशिक क्षति पहुंची। इनमें 2835 पक्के और 402 कच्चे मकान शामिल हैं। इसके अलावा 3953 छोटे-बड़े पशुओं की मौत भी दर्ज की गई है।

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व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी प्रभावित
आपदा का असर आम लोगों के जीवन के साथ-साथ व्यापारिक गतिविधियों पर भी पड़ा। बड़ी संख्या में दुकानें, होटल, होमस्टे, रेस्टोरेंट और अन्य व्यावसायिक भवन बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

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Author: Shakshi Negi
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