उत्तराखंड
सीमा के सन्नाटे में नेतृत्व की गूंज: रिटायर्ड आईपीएस विमला गुंज्याल बनीं गुंजी गांव की निर्विरोध प्रधान
पिथौरागढ़: भारत-चीन सीमा से सटे उत्तराखंड के गुंजी गांव में एक नई शुरुआत हुई है। देश सेवा के बाद अब ग्रामीण सेवा—यही संदेश लेकर सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी विमला गुंज्याल ने गुंजी ग्राम पंचायत की बागडोर संभाली है। उन्हें गांववासियों ने निर्विरोध ग्राम प्रधान चुना है।
गुंजी जैसे सामरिक और भौगोलिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में, एक पूर्व पुलिस महानिरीक्षक (IG) का ग्राम प्रधान बनना केवल एक प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि ग्राम विकास और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक प्रेरक कदम है।
सहमति से हुआ निर्विरोध चुनाव, गांव में जश्न जैसा माहौल
गुंजी गांव में ग्राम प्रधान पद के लिए पहले चार अन्य लोगों ने नामांकन पत्र खरीदे थे। लेकिन गांव के हित और सामूहिक निर्णय को प्राथमिकता देते हुए सभी ने विमला गुंज्याल के समर्थन में नामांकन नहीं भरा। इस प्रकार वे एकमात्र उम्मीदवार के रूप में निर्विरोध चुनी गईं।
ग्रामीणों के अनुरोध पर जब विमला गुंज्याल धारचूला पहुंचीं, तो उनका भव्य स्वागत हुआ। गांव में जश्न जैसा माहौल रहा, और ग्रामीणों ने इस दिन को गुंजी के इतिहास में विशेष दिन बताया।
देश सेवा से गांव सेवा की ओर
सेवानिवृत्त आईजी विमला गुंज्याल के अनुभव और प्रशासनिक कौशल को लेकर ग्रामीणों को काफी उम्मीदें हैं। उनका मानना है कि उनके नेतृत्व में गांव को नई दिशा और पहचान मिलेगी।
गांववासियों का कहना है कि, “आईपीएस अधिकारी रहते हुए उन्होंने देश की सुरक्षा और सेवा की, अब गांव के विकास में उनका मार्गदर्शन मिलेगा। उनकी सोच सकारात्मक है और उनका व्यक्तित्व पूरे गांव को जोड़ता है।”
पहले पीएम मोदी की यात्रा, अब ग्राम विकास की बारी
गुंजी गांव को पहले से ही आदि कैलाश, ओम पर्वत और कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग के कारण देशभर में विशेष पहचान मिल चुकी है। 12 अक्टूबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के बाद इस गांव की राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक प्रसिद्धि हुई।अब ग्राम प्रधान के रूप में विमला गुंज्याल की नियुक्ति से स्थानीय विकास, पर्यटन प्रबंधन, बुनियादी ढांचे में सुधार और आजीविका के नए अवसर खुलने की संभावना है।
गुंजी गांव: जहां संस्कृति, सामरिकता और शांति मिलती है साथ
गुंजी, पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी में स्थित एक खूबसूरत और सामरिक रूप से अहम गांव है। 3500 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस गांव में भोटिया समुदाय निवास करता है, जो अपनी पारंपरिक जीवनशैली, संस्कृति और सरलता के लिए जाना जाता है।
यहां के लोग मुख्यतः खेती, पशुपालन और सीमित व्यापार से अपनी आजीविका चलाते हैं। भारतीय सेना और आईटीबीपी की निगरानी में रहने वाला यह क्षेत्र सामरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण यहां यात्रा के लिए इनर लाइन परमिट आवश्यक होता है।
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