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क्या फेफड़ों की बीमारी का असर आंखों पर भी पड़ता है, आइये जानते हैं क्या कहते है स्वास्थ्य विशेषज्ञ
आज की तेज़-तर्रार जिंदगी में स्वास्थ्य संबंधी खतरों में लगातार वृद्धि हो रही है। खासकर फेफड़ों की समस्याएं अब युवाओं में भी आम होती जा रही हैं। वायु प्रदूषण, धूम्रपान, संक्रमण और अस्वस्थ जीवनशैली ने फेफड़ों को कमजोर कर दिया है। इसके चलते अस्थमा, फेफड़ों में संक्रमण और पल्मोनरी फाइब्रोसिस जैसी गंभीर बीमारियां बढ़ रही हैं।
हाल के अध्ययनों में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पल्मोनरी फाइब्रोसिस का समय पर इलाज न करवाना न केवल फेफड़ों की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है, बल्कि आंखों की रोशनी पर भी गंभीर असर डाल सकता है।
पल्मोनरी फाइब्रोसिस क्या है?
पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक प्रगतिशील फेफड़ों की बीमारी है, जिसमें फेफड़ों में स्कार्स बनने लगते हैं। दुनिया भर में लगभग 3 से 5 मिलियन लोग इससे प्रभावित हैं। यह रोग आमतौर पर वृद्धों में देखा जाता है, लेकिन अब धीरे-धीरे युवाओं में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं।
इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस (IPF) युवाओं में देखने को मिलता है। इस बीमारी का पूर्ण इलाज संभव नहीं है, लेकिन दवाओं और उपचार से जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाई जा सकती है।
फेफड़ों की बीमारी का आंखों पर असर
विशेषज्ञ बताते हैं कि पल्मोनरी फाइब्रोसिस से पीड़ित लोगों में फेफड़ों की कार्यक्षमता कम होने के कारण रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। ऑक्सीजन की कमी रेटिना और ऑप्टिक नर्व को प्रभावित करती है, जिससे दृष्टि में बदलाव और गंभीर मामलों में अंधापन तक का खतरा बढ़ सकता है।
इसलिए पल्मोनरी फाइब्रोसिस वाले मरीजों के लिए नियमित नेत्र परीक्षण बहुत जरूरी है। समय पर जांच और इलाज से आंखों की जटिलताओं को कम किया जा सकता है।
डॉक्टर क्या कहते हैं?
डॉक्टरों के अनुसार, पल्मोनरी फाइब्रोसिस में धुंधली दृष्टि, दृष्टि में बदलाव या रेटिना की क्षति जैसी समस्याएं देखने को मिल सकती हैं। शरीर में ऑक्सीजन की कमी से आंखों की रक्त वाहिकाओं पर असर पड़ता है, जिससे आंखों की स्थिति बिगड़ सकती है।
इलाज में आमतौर पर कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स का उपयोग किया जाता है, लेकिन इसका इस्तेमाल मोतियाबिंद का जोखिम भी बढ़ा सकता है। इसलिए डॉक्टर मरीजों को नियमित निगरानी और सावधानी बरतने की सलाह देते हैं।
ब्रिटेन के ऑप्टिकल एक्सप्रेस के निदेशक डॉ. स्टीफन हन्नान कहते हैं कि पल्मोनरी फाइब्रोसिस वाले लोगों को अपनी आंखों की रक्षा के लिए समय-समय पर नेत्र जांच करानी चाहिए। साथ ही ऑक्सीजन स्तर की निगरानी, हाइड्रेशन और डॉक्टर्स की सलाह अनुसार आई ड्रॉप्स का उपयोग भी मददगार साबित होता है।
(साभार)
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