उत्तराखंड
बचकर रहे , देश मे कोरोना का डेल्टा प्लस वेरियंट के मिले कई मामले , ये वेरियंट है बेहद घातक
कोरोना का नया वायरस डेल्टा प्लस बेहद खतरनाक है। यह न सिर्फ शरीर में बनी हुई एंटीबॉडी को खत्म करता है बल्कि फेफड़ों की कोशिकाओं को भी बहुत जल्दी संक्रमित करके मार देता है। ऐसे में चिंता इस बात की होने लगी है कि अगर लोगों को दी गई वैक्सीन के बाद यह वायरस शरीर में प्रवेश करेगा तो क्या वैक्सीन से बनी हुई एंटीबॉडी भी खत्म कर देगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश पर आईसीएमआर और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने दिशा में अब शोध शुरू कर दिया है।देश में डेल्टा प्लस की दस्तक के बाद इस पर शोध करने वाले चिकित्सकों ने पाया है कि यह स्वरूप बेहद घातक है। संक्रमित मरीजों पर हुए शोध के बाद पाया गया कि यह वायरस शरीर में बीमारी के खिलाफ बने एंटीबॉडी को बहुत तेजी से खत्म करने लगता है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह प्रक्रिया बेहद खतरनाक है। डेल्टा प्लस वैरिएंट के अब तक अपने देश में 40 से ज्यादा नए मामले आ चुके हैं जबकि एक मरीज की मौत भी हो चुकी है। यही वजह है कि आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वॉयरोलॉजी ने मिलकर डेल्टा प्लस पर शोध करना शुरू कर दिया है।डेल्टा प्लस पर शोध करने वाली टीम के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि उनका मकसद इस शोध में यह जानना है कि यह वैरिएंट दुनियाभर में मिले अब तक अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा के मूल स्वरूप से कितना अलग है। जिनोम सीक्वेंसिंग से इसकी पहचान तो हो गई है लेकिन इसके खतरनाक स्तर का अब तक पूरा अंदाजा नहीं लगा है। शोध करने वाली टीम ने बताया कि फिलहाल शुरुआती दौर में इस बात का जरूर पता लगा है कि डेल्टा प्लस शरीर में बनी हुई एंटीबॉडी को खत्म करने लगता है। अगर ऐसा है तो यह बेहद खतरनाक है। क्योंकि लोगों को दिए जाने वाली वैक्सीन से शरीर में रोग के खिलाफ लड़ने की एंटीबॉडी बनने लगती हैं।इसके अलावा वायरस का बदला हुआ यह स्वरूप फेफड़ों की कोशिकाओं को भी बहुत जल्दी मार देता है। जिन संक्रमित मरीजों में डेल्टा प्लस वैरिएंट मिला है उनके फेफड़ों के काम करने की क्षमता पर बहुत जल्दी असर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बदले हुए स्वरूप से फेफड़ों की कोशिकाओं पर बहुत जल्दी दुष्प्रभाव पड़ने लगता है।आईसीएमआर के चीफ एपिडमोलॉजिस्ट डॉक्टर समीरन पांडा कहते हैं कि इस दिशा में शोध किया जा रहा है। वे कहते हैं अभी तक किसी भी संक्रमित मरीज में डेल्टा प्लस का वैरिएंट नहीं मिला है इसलिए इस बात की पुष्टि नहीं हो सकती है कि वैक्सीन देने के बाद बनी एंटीबॉडीज को भी डेल्टा प्लस खत्म कर रहा है। वे कहते हैं शोध के बाद आए नतीजे इसकी पुष्टि करेंगे। आईसीएमआर के विशेषज्ञों का कहना है कि अगले एक सप्ताह तक हमें डेल्टा प्लस के संक्रमण के बारे में पूरी जानकारी एकत्र करनी है। क्योंकि डेल्टा प्लस के संक्रमित मरीजों के मिलने का सिलसिला लगातार जारी है, लेकिन जिस तरीके से यह संक्रमण एक दूसरे में ट्रांसफर होना चाहिए उसकी गति बहुत कम दिख रही है। डेल्टा प्लस ही नहीं लैम्बडा पर भी नजर स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक डेल्टा प्लस ही नहीं बल्कि कोविड वायरस के बदले स्वरूप लैम्ब्डा पर भी उनकी नजर बनी हुई है। नेशनल कोविड टास्क फोर्स की टीम के वैज्ञानिक बताते हैं कि जिस तरीके से पेरू और दक्षिणी अमेरिका के कई देशों समेत दक्षिण अफ्रीका के देशों तक लैम्बडा तबाही मचा रहा है वह बेहद चिंताजनक है। क्योंकि अब तक इस वायरस की संक्रमण दर से दुनिया के हेल्थ एक्सपर्ट को परेशान कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि हमें सिर्फ डेल्टा प्लस वैरिएंट से लड़ने की चिंता नहीं करनी है बल्कि लैम्ब्डा जैसे वायरस को रोकना भी हमारी प्राथमिकता में है।
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