उत्तराखंड
Lockdown को एक साल अभी भी कोरोना से नहीं उबरा उत्तराखंड , पिछले एक साल में काफी कुछ हुआ राज्य में
उत्तराखंड में पहला कोरोना संक्रमित मामला 15 मार्च 2020 को सामने आया था। ठीक एक साल पहले कोरोना का पहला संक्रमित मिलते ही देवभूमि सहम गई। पहले से सजग सरकार ने जनता कर्फ्यू के साथ ही लॉकडाउन लगा दिया था। जिसके बाद राजधानी देहरादून सहित राज्य के सभी इलाकों में सन्नाटा पसर गया था। सड़कों पर इक्का- दुक्का लोग भी दिखाई दे रहे थे। वहीं लॉकडाउन का सबसे अधिक असर शिक्षा जगत पर पड़ा। सत्र शुरु भी नहीं हो पाया था कि स्कूल-कॉलेज बंद करने पड़े। कई लोगों के रोजगार छिन गए। कईयों का व्यापार ठप हो गया। रु़द्रप्रयाग में एक युवक ने अपने घर पर शंखनाद करने के बाद जनता कर्फ्यू का एलान किया। पूरे मौहल्ले ने युवक की इस मुहिम का साथ दिया था। ‘जनता कर्फ्यू’ के तहत उत्तराखंड रोडवेज की बसों का संचालन भी ठप था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनता कर्फ्यू की अपील को जनता ने सहर्ष स्वीकार किया और परिवार के साथ घर में रहकर समय बिताया। कर्फ्यू के चलते दिवंगत मां का वार्षिक श्राद्ध प्रभावित न हो, इसके लिए उत्तराखंड सीड्स एंड तराई डेवलेपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड (टीडीसी) के अधिकारी डॉ. दीपक पांडे ने अनूठा तरीका अपनाया था। पंडित जी अपने घर से ही वीडियो कॉल पर विधि विधान के साथ उनकी मां के श्राद्ध का अनुष्ठान कराया था।इस दौरान सैकड़ों पर्यटक भी उत्तराखंड में फंस गए थे। जिन्हें बाद में रवाना किया गया था। देहरादून में सबसे ज्यादा व्यस्त इलाका माना जाने वाला घंटाघर क्षेत्र सूना हो गया था। प्रेमनगर बाजार, पलटन बाजार से लेकर कई जगह सड़कें खाली थीं।हरिद्वार में मोती बाजार से लेकर ज्वालापुर और लक्सर तक जनता कर्फ़्यू का असर दिखाई दिया था। गढ़वाल में चमोली , रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी से लेकर यमुनोत्री के मुख्य बाजार भी खाली थे। रुद्रपुर के किच्छा हाईवे में ऐसे सन्नाटा पसरा हुआ था। बाजार भी बंद रानीखेत की गलियों और चौबटिया बाजार में सन्नाटा था। हाईवे भी पूरी तरह से खाली था। ‘जनता कर्फ्यू’ के चलते भारत-नेपाल सीमा पर बसा झूलाघाट क़स्बा भी पूरी तरह बंद हो गया था। पिथौरागढ़ के सिल्थाम तिराहे में भी कोई नहीं दिख रहा था। अल्मोड़ा के केमू स्टेशन में भी लोगों की भीड़ नहीं थी। लोग घरों में बंद हो गए थे। अब जब एक बार फिर देश के कई राज्यों में कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है। तब भी लोग संभल नहीं रहे हैं। हाल ये है कि बाजारों व सार्वजनिक स्थलों के अलावा परिवहन के साधनों में भी कोविड से बचाव के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। लोग बिना मास्क के घूम रहे हैं। शारीरिक दूरी का पालन भी नहीं किया जा रहा है। बुखार या खांसी, जुकाम होने पर लोग खुद ही दवा ले रहे हैं। कोरोना संक्रमण के कारण तीन महीने के लिए लगे लॉकडाउन ने उत्तराखंड को कई तरह से नुकसान पहुंचाया। प्रदेश की विकास दर शून्य से भी नीचे पहुंच गई। ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था भले ही कुछ हद तक बच पाई हो लेकिन कोरोना का संक्रमण प्रदेश के पर्यटन से लेकर कारोबार तक को प्रभावित कर गया।
प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की लकीर वैसे कोरोना के कारण शुरू हुए लॉकडाउन से पहले से ही खिंचनी शुरू हो गई थी। प्रदेश की विकास दर चार प्रतिशत तक पहुंच गई थी। कोरोना संक्रमण में तेजी आई तो लॉकडाउन मार्च में शुरू हुआ था और मई में जाकर खत्म हुआ। इसके बाद अनलॉक शुरू हुआ लेकिन लॉकडाउन की पाबंदियों ने तब तक खासा नुकसान पहुंचा दिया था।
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सहित उनकी सरकार के कई मंत्री भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आए थे। इससे सरकार का कामकाज भी प्रभावित हुआ। सचिवालय में भी काम काज लंबे समय तक बंद रहा। अधिकारियों को घर से काम करना पड़ा लेकिन यह सचिवालय को ज्यादा रास नहीं आया।
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