उत्तराखंड
विधानसभा भर्ती मामला: हरीश रावत ने मंत्री अग्रवाल पर साधा निशाना, कही ये बात
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सरकार पर निशाना साधते हुए साफ तौर पर कहा की विधानसभा में हुई भर्तियों को मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष ने अवैध माना है ऐसे में अवैध कृत्य करने वाले क़ो तो दण्डित किया जाता हैं तो जिन लोगों ने अवैध नियुक्तियां की हैं उनके विषय पर उनका क्या कहना है उनके अनुसार मैं प्रेमचंद अग्रवाल को अच्छा मानता हूं लेकिन अब उनका कैबिनेट में बना रहना औचित्य सम्मत हैं उनके अनुसार जब सरकार ने खुद ही इन भर्तियों क़ो अवैध माना हैं तो फिर अवैध नियुक्ति करने वाला व्यक्ति कैसे मंत्रिमंडल मे रह पायेगा।
वही सोशल मीडिया में भी हरीश रावत ने सवाल उठाया#विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारियों की एसएलपी के खारिज होने पर मुख्यमंत्री जी अपनी पीठ ठोक रहे हैं। वह उत्तराखंडी का स्वभाव है, जहां भी उसको नौकरी मिलेगी, नौजवान वहां पर टूट पड़ेगा। विधानसभा में 2001 से भर्तियां हो रही हैं उनकी क्या गलती है, जिन्होंने उन नौकरियों को प्राप्त कर लिया? और यदि गलती है भी तो केवल क्या उन्हीं की गलती है? विधि विहीन नौकरी देने वालों की गलती नहीं है या दिलवाने वालों की गलती नहीं है?
विधि विहीन नौकरी देने वाला एक व्यक्ति आज भी आपके बगल में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री के रूप में विराजमान हैं और दिलवाने वाले कई लोग, आपके आस-पास होंगे तो केवल नौकरी को ही सब कुछ मानने वाले इन उत्तराखंडी नौजवानों की ही गलती है? उनको ही दंडित होना चाहिए? या ऐसे लोगों की भी निंदा विधानसभा को करनी चाहिए जिन्होंने इस तरीके की नियुक्तियां की हैं या करवाई हैं और फिर अभी तो 2016 से पहले की ऐसी नियुक्तियों के लोग विधानसभा का संचालन कर रहे हैं! यदि नियुक्तियां विधि विरुद्ध हैं तो ऐसे विधि विरुद्ध नियुक्त पाये हुये लोग नियमितीकरण के आड़ में नहीं बच सकते हैं!
अपराध कभी भी किया गया हो, उसका दण्ड तो रिटायरमेंट के बाद भी दिया जा सकता है, यदि विधानसभा में नियुक्ति पाना अपराध है तो यह अपराध 2001 से लेकर अभी-अभी तक नियुक्ति पाये प्रत्येक व्यक्ति ने किया है, यहां तो अभी भी लोग सेवारत हैं। क्या विधानसभा में विधि विहीन तरीके से नियुक्त व्यक्ति कार्यरत रहना चाहिए? माननीय अध्यक्षा जी विदुषी महिला हैं, यदि समाधान चाहती हैं तो विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस समस्त प्रकरण पर चर्चा करें और निर्णय लें। अन्याय या भेदपूर्ण न्याय, किसी संस्था को महान नहीं बनाते हैं।
सनद रहे, इन नियुक्तियों में 2001 से अब तक मैं ही एकमात्र ऐसा भूत या वर्तमान हूं जिसका कोई भी आत्मज़ या निकटस्थ व्यक्ति विधानसभा में नौकरी नहीं पाया है।
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