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राजनिति: मुख्यमंत्री और मंत्रियों के दिल्ली दौरों से चढ़ा सियासी पारा, क्या ‘गढ़वाल’ का प्रेशर पॉलिटिक्स?

उत्तराखंड

राजनिति: मुख्यमंत्री और मंत्रियों के दिल्ली दौरों से चढ़ा सियासी पारा, क्या ‘गढ़वाल’ का प्रेशर पॉलिटिक्स?

उत्तराखण्ड में कुछ लोग राजनैतिक अस्थिरता फैलाने का मंसूबा पाले हुए हैं। उनकी ओर से भाजपा हाईकमान और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर लगातार आरोप लगाए जा रहे हैं। हालांकि ऐसे कई लोग प्रदेश में हैं जो क्षेत्रवाद को हवा देकर गढ़वाल की उपेक्षा का मुद्दा उठा रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि मौजूदा समय में विकास को लेकर गढ़वाल और कुमाऊं मण्डल के बीच संतुलन बना हुआ है। सरकार और संगठन में प्रतिनिधित्व देखें तो गढ़वाल को कुमाऊं पर तरजीह दी गई है। उत्तराखण्ड में गढ़वाल और कुमाऊं दो मण्डल हैं। राजनैतिक तौर पर कांग्रेस और भाजपा समेत सभी दल इन मण्डलों के बीच संतुलन बनाकर ही अपनी रणनीति तैयार करते आए हैं। सरकार किसी भी दल की हो अक्सर होता यह है कि मुख्यमंत्री यदि कुमाऊं से हुआ तो सत्ताधारी दल का अध्यक्ष गढ़वाल से होता है।

गढ़वाल से मुख्यमंत्री होने पर संगठन के प्रदेश अध्यक्ष पद पर इसी तरह की तवज्जो कुमाऊं को दी जाती है। कैबिनेट में भी दोनों मण्डलों को तकरीबन बराबर प्रतिनिधित्व देकर संतुलन बैठाया जाता है। मौजूदा समय में भी लगभग यही स्थिति है। बावजूद इसके विरोधी तत्व आरोप लगा रहे हैं कि भरतीय जनता पार्टी सरकार और संगठन में कम प्रतिनिधित्व देकर गढ़वाल मण्डल की उपेक्षा कर रही है। आरोप कुछ भी लगाये जाएं लेकिन आंकड़ों से तस्वीर साफ हो जाती है। धामी सरकार में मुख्यमंत्री के अलावा कुल 11 मंत्री बनाए जा सकते हैं। फिलवक्त सरकार में कुल 7 मंत्री हैं जबकि चार पद रिक्त हैं। तीन पद सरकार गठन के वक्त से ही रिक्त रखे गए थे जबकि एक पद कैबिनेट मंत्री चन्दनराम दास के निधन से खाली हुआ है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कैबिनेट में जो 7 मंत्री हैं उनमें से पांच मंत्री सतपाल महाराज, प्रेमचन्द अग्रवाल, धन सिंह रावत, गणेश जोशी और सुबोध उनियाल गढ़वाल मण्डल से हैं।

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विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खण्डूड़ी भी गढ़वाल क्षेत्र (कोटद्वार विधानसभा) से ही हैं। पैतृक गांव को आधार बनाएं तो कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा भी गढ़वाल से ही माने जा सकते हैं। पार्टी संगठन की बात करें तो प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट न सिर्फ प्रदेश भाजपा की कमान संभाले हुए हैं बल्कि उन्हें राज्यसभा का सांसद भी बनाया गया है। उनके अलावा, नरेश बंसल (देहरादून) और कल्पना सैनी (रुड़की, हरिद्वार) गढ़वाल मण्डल के ही निवासी हैं जो संसद के उच्च सदन राज्यसभा में उत्तराखण्ड का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। और तो और अब तक राज्य सरकार में जिन्हें दायित्व बांटे गए हैं उनमें ज्यादातर गढ़वाल मण्डल के पार्टी कार्यकर्ता हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि प्रतिनिधित्व के मामले में गढ़वाल की उपेक्षा का आरोपो में ज्यादा सच्चाई नजर नहीं आती लेकिन जिन्हे अस्थिरता फैलानी हैं उनके लिए ये मुद्दा बेहद मुफिद लगता हैं।

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की बात करें तो पिछले दिनों जिस तरह से विधायकों का प्यार सीएम को लेकर उमड़ा उससे साफ हैं कि सत्ता पक्ष के विधायक सीएम के निर्णय से खुद को सहमत पाते हैं, यहां तक कि विपक्ष के विधायकों द्वारा भी सीएम धामी की तारीफ कई बार देखने को मिलती हैं हाल में सीएम के कभी धुर विरोध में रहने वाले कांग्रेस के उप नेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी ने भी सीएम धामी की जमकर तारीफ की. ऐसा नहीं है कि गढ़वाल और कुमाऊं के बीच सियासी खाई पैदा करने की कोशिश पहली बार हुई है, इससे पहले भी साजिशें रची गईं, जिसका नुकसान राज्य को उठाना पड़ा। ऐसे में ना केवल अब राज्य 24 साल पार कर चुका हैं ऐसे में हमें जातिवाद या क्षेत्रवाद से आगे बढ़ते हुए प्रदेश के विकास को लेकर काम करना चाहिए।

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Author: Shakshi Negi
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