उत्तराखंड
पर्यटन के क्षेत्र में सरकार तो सक्रिय लेकिन आप कहाँ नदारद हैं पर्यटन मंत्री जी
देहरादून : यह मिस्टर इंडिया यानी कहीं दिखाई नहीं देना वाली कहावत उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज पर भी चरितार्थ होती दिखती है सतपाल महाराज पर्यटन विकास से जुड़ी बड़ी बड़ी बातें जरूर मंत्री बनने के समय करते दिखे थे साढ़े तीन साल में न वो दावे पूरे हूवे और न ही सरकार को मजबूत सरकार बनाने में सतपाल महाराज दिखाई दिए हालात ये हैं कि बीजेपी कार्यकर्ता भी उन्हें अभी तक अपना नही पाया है
वही हालात तो ये है कि प्रदेश में पर्यटन विकास के बड़े काम तो हो रहे हैं लेकिन इनके लिए मंत्री उत्साहित नहीं दिखते और ना ही वो किसी कार्यक्रम में दिखाई देते तो क्या साफ है क्या मंत्री सतपाल महाराज इस सरकार में रहना ही नहीं चाहते
13 जिले 13 डेस्टिनेशन कार्यक्रम
ऐसे ही कुछ मामलों में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज घिरते नजर आ रहे है और जनता से उनकी दूरियां इतनी बढ़ गई कि चाहे 13 जिले 13 डेस्टिनेशन कार्यक्रम हो या अन्य पर्यटन रोजगार योजनाओ को आगे बढ़ाने का मामला हो सतपाल महाराज कही नहीं दिखाई दे रहे । सतपाल महाराज उत्तराखंड में पर्यटन विकास के प्रति जिम्मेदारी दिखाते तो केवल योजनाएं की घोषणा तक ही सीमित न रहते बल्कि योजनाएं बनाते उन्हें कैसेे पूरा किया इस पर काम करते और पर्यटन के हर कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा भी लेते लेकिन वो ऐसा करते दिखाई नहीं देते।
डोबरा चांटी पुल
विश्व स्तरीय एक ऐसा आयोजन जिससे उत्तराखंड ही नहीं लाखो लोगो फायदा हुआ ,ऐसे आयोजन में सतपाल महाराज दिखाई ही नहीं दिए जबकि उन्हें प्रदेश में मुख्यमंत्री के बाद नबर 2 मंत्री माना जाता है पर इतने बड़े कार्यक्रम को नजरअंदाज करने को आप क्या कहेंगे । पर्यटन को पंख लगने वाली इस बड़ी योजना के संबंध में इतनी बड़ी लापरवाही सतपाल महाराज कैसे कर सकते है ? यह सोचने का विषय है ।
राज्य कैबिनेट में अक्सर न आना
राज्य सरकार की अधिकांशत कैबिनेट बैठकों में सतपाल महाराज आते ही नहीं है जिससे पता चलता है कि राज्य के कार्यों में इनकी कितनी दिलचस्पी है और कितना सीरियसली वो राज काज को लेते है ।
कोरोना काल मे जमकर हूई थी फजीहत कोरोना होने के बावजूद भी बिना बताए कैबिनेट में आकर पूरी राज्य सरकार ,सचिवालय,अपने मातहतों की जान को परेशानी में डालने का काम उन्होंने किया और बाहर से भी कई कोरोना पीड़ित मंत्री आवास में पाए गए जिसकी वजह से इन्हे तो कवारेंटेन रहना ही पड़ा बल्कि इनकी वजह से मुख्यमंत्री सहित पूरी कैबिनेट व राज्य सचिवालय के अधिकारियों वह भी कहीं दिनों तक qurentine होने की परेशानी झेलनी पड़ी और आज भी जनता सचिवालय में एंट्री नहीं कर पा रही है लोग दूर दूर से आकर वापस जा रहे है जिसके पूर्ण जिम्मेदार सतपाल महाराज जैसे वो लोग है जिन्होंने खुद सरकार के आदेशों को गंभीरता से नहीं लिया
एडवेंचर स्पोर्ट्स का आज ऐतिहासिक कार्यक्रम न्यार घाटी कार्यक्रम
वहीं बात करें आज हुए खेरासैंण ,सतपुली का कार्यक्रम की तो इतने बड़े कार्यक्रम में सतपाल महाराज वो भी पर्यटन मंत्री होने के नाते भी ,नदारद होना यह दर्शाता है की वो अपने विभाग अपने कार्य और सरकार के कार्यो के प्रति कितने जिम्मेदार हैं न किसी कार्यक्रम में जाना और न ही उसको आगे बढ़ाने में कोई काम करना साफ बताता है मंत्री जनता से कितने दूर हैं और क्या मुख्यमंत्री न बनने की उनके अंदर इतनी टीस है कि वो सरकार के कार्यो में कोई सहयोग ही नहीं देना चाहते ।
पिछले 4 साल की कोई अहम उपलब्धि नहीं
देखा जाए तो मुख्यमंत्री के बाद नंबर 2 कहलाए जाने वाले वरिष्ठ मंत्री सतपाल महाराज 4 साल में चाहे तो बहुत कुछ कर सकते थे पर इन 4 सालो में कोई एक भी ऐसी उपलब्धि नहीं है जिसे जनता सर माथे बैठाकर कह सके कि इन्होंने कुछ कार्य उत्तराखंड के लिए किया हो उल्टा पर्यटन के कार्यक्रमों में न जाना जनता को बहुत अखरा है
राज्य स्थापना दिवस कार्यक्रम में हरिद्वार के प्रभारी मंत्री के रूप में कार्यक्रम में न जाना
कितनी बड़ी बात है जब पता चलता है कि राज्य स्थापना दिवस जैसे भव्य व ऐतिहासिक कार्यक्रम जिसमे उत्तराखंड कि जन भावना अपने आंदोलनकारियों और शहीदों को सम्मान दे रही हो और कार्यक्रम के प्रभारी मंत्री मुख्य अतिथि ही कार्यक्रम में ना आए और शहीदों के परिवारों और आंदोलन कारियो के दिल पर क्या बीती होगी की जिसे उन्होंने अपना नेता चुना वो ही उनका साथ छोड़ गया और आगे तो क्या ही उम्मीद करे ? राज्य स्थापना दिवस के कार्यक्रम में सतपाल महाराज ने न जाकर एक बहुत बड़ी लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना रवैये का परिचय दिया है । जिस कारण अचानक राज्य सरकार को उसकी वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ी ।
जब देखो दिल्ली हीं दिल्ली तो उत्तराखंड से क्या लेना
सतपाल महाराज को जब देखा गया दिल्ली दौड़ते ही देखा गया है पहले कांग्रेस में जब मौका मिलता था तो सोनिया गांधी के दरबार मैं पहुंच जाते थे और अब मौका मिलते ही भाजपा के दरबार में सतपाल महाराज आते जाते दिखे है और महाराज के आश्रम में भी प्रवचन आदि में अधिक समय बीत जाता है जो हम टी वी पर प्रवचन देखते रहते है तो संत व्यक्ति को राजनीति की जरूरत ही कहां है और जब समय ही न हो जनता के लिए और राजकीय कार्यक्रम मे न जाना हो तो राजनीति से संन्यास लेना ही क्या उचित विकल्प नहीं होगा । क्यूंकि जब जनता के काम ही नहीं करने और न रोजगार और ना विकास करना है तो फिर राजनीति ये राजकाज किस बात का ऐसे मंत्री को मुख्यमंत्री भी क्यों झेल रहे हैं ये समझ से परे है।
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