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बढ़ती हुई जनसंख्या देश की सब समस्याओं की जड़, कोरोना महामारी में भारत की बढ़ती जनसंख्या आग में घी का काम

उत्तराखंड

बढ़ती हुई जनसंख्या देश की सब समस्याओं की जड़, कोरोना महामारी में भारत की बढ़ती जनसंख्या आग में घी का काम

देहरादून । बढ़ती हुई जनसंख्या देश के हर तरह के विकास में एक बड़े रोड़े का काम कर रह रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या और लोगों की बढ़ती हुई भीड़, गन्दगी, व्यक्तिगत सफाई की कमी और प्रदूषित हवा के कारक है। भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र में किसी भी तरह का इंफेक्शन बहुत जल्दी से फैलता है।
यह देखा गया है कि कोविड के इंफेक्शन का प्रभाव गांव की तुलना में शहरी क्षेत्रों में ज्यादा हैं। आज शहरी क्षेत्रों जैसे कि मुंबई, पूना, चेन्नई, दिल्ली में कोरोना संक्रमण बहुत बडे़ गढ़ बन चुके है। यद्यपि शहरी क्षेत्रों में पूरे देश की तुलना में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाऐं है फिर भी वह इतनी ज्यादा नहीं है कि इन शहरों कि पूरी जनसंख्या को अच्छी तरह से सुविधा मिल सके। जिससे ग्रामीण लोग अपनी स्वास्थ्य सेवाओं की पूर्ति के लिए खासतौर से कोरोना महामारी के दौरान शहरों की तरफ भाग रहे है। लगातार बढ़ती हुई कोरोना मरीजों की भीड़ से पूरी तरह से शहरी स्वास्थ्य व्यवस्थाऐं भी बूरी तरह से चरमरा गई है।
मास-मीडिया में ऐसे कई खबरे आती है जिनमें कुछ मामलों में कोरोना संक्रमण ने पूरे ही घर को निगल लिया है। कोरोना संक्रमण इतना खतरनाक तथा इतनी गति से फैलने वाला होता है कि यदि घर में किसी एक व्यक्ति को कोरोना होता है तो वह पूरे परिवार को संक्रमित कर सकता है, यह समस्या संयुक्त परिवार में कुछ ज्यादा ही देखी गई है। संयुक्त परिवार की प्रथा आज भी देश में अच्छी तरह से चल रही है।
दुनिया के आंकड़े बताते है कि किसी भी देश के 5 प्रतिशत आबादी कोविड-19 के वायरस से संक्रमित होगी और उनमें से लगभग 1-2 प्रतिशत लोगों की मौत हो रही है। कोरोना ने हमारे देश की स्वास्थ्य सेवा की तैयारी को नंगा कर दिया है और जो स्वास्थ्य सुविधाऐं उपलब्ध थी उसकी भी धज्जियां उड़ गयी है।
आज 4 मई 2021 अपने देश में 20 लाख से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके है, तथा 2 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसा लगता है कि कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या अपने देश में आंकडों ज्यादा ही है क्योंकि कुछ लोग तो कई कारणों से अपना परीक्षण ही नहीं करा रहे हैं चाहे वह फिर वह अनभिज्ञता हो या गरीबी हो या आइसोलोशन या फिर अस्पताल में भर्ती का डर।
अब यदि हम फिर जनसंख्या आंकड़ों की बात करें तो आज की तारीख में अपने देश की जनसंख्या लगभग 140 करोड़ है और यदि उसमें से 5 प्रतिशत लोग संक्रमित होते है जिसका मतलब होता है लगभग साढे़ सात करोड़ लोग संक्रमित होगें। जो संक्रमित होते है उनमें से 15% लोगों को जिसकी संख्या लगभग 1 करोड़ होती है इन सबको किसी न किसी तरह की अस्पताल में इलाज की जरुरत पड़ेगी और इन 7 करोड़ लोगों में से 5% की संख्या लगभग 3.5 लाख होती है उनको उनको आई.सी.यू. सेवाओं की जरुरत पड़ेगी।
महामारी की इस लहर में आधारभूत स्वास्थ्य सेवाओं की जैसे की अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सीजन की सुविधा एवं आई.सी.यू. बिस्तर जैसे सुविधाओं की पोल पूरी तरह खोल दी है। एक संभावना है कि भारत सरकार, प्रदेशों की सरकारें, वेन्टीलेटर, ऑक्सीजन सिलेंडर तथा जरुरत की और मशीनों का तो आयात रातों-रात कर सकते है लेकिन मानव शक्ति को जैसे कि डाॅक्टर, आई.सी.यू. के डाॅक्टर, नर्स, आई.सी.यू. में टेक्नीशीयन तथा अन्य दूसरे पेरामेडिकल को कैसे रातों-रात पैदा कर सकते हैं? यह सोचने वाली बात है।
यदि हम सब जरुरतमंद लोगों को स्वास्थ्य सेवाऐं देना चाहते हैं, तो हमारी सरकारों को एक दीर्घ कालीन योजना की तैयारी करनी पड़ेगी, जिससे हम आवश्यक मानव शक्ति, मशीन, दवाईयां, दूसरी जरुरतों की मांग और पूर्ति को अच्छे ढंग से पूरा कर सके।
हमारे देश की राष्ट्रीय सांख्ययिकी कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार दर्शाया गया है कि लगभग 19 लाख अस्पताल के बिस्तर है वह 95 हजार आई.सी.यू. बिस्तर है और 48 हजार वेन्टीलेटर है और जिसमे से केवल 5 प्रतिशत बेर्ड आई.सी.यू. के हैं और उनमें से केवल आधे बिस्तरों पर ही वेन्टीलेटर है जबकि वेन्टीलेटर एक आवश्यक जीवन रक्षक मशीन है।
मेरा मानना है कि अपने देश के बहुत से निजी अस्पतालों की आई.सी.यू. में इस्तेमाल होने वाले वेन्टीलेटर और मशीनों की खरीदने की क्षमता तो है और वह चुटकी बजाते ही खरीद सकते है लेकिन क्या वो वेंटीलेटर और दूसरी मशीनों को चलाने के लिए अनुभवी और प्रशिक्षित डाॅक्टर और कर्मचारियों की व्यवस्था इतनी आसानी से कर सकते है, जितनी आसानी से वेन्टीलेटर की व्यवस्था? हमारे राजनेताओं तथा योजना अधिकारियों को एक भावी व्यवस्था बनानी चाहिए जो कोरोना महामारी और दूसरी अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का हल सुट्टढ़ ढ़ंग से कर सके। जिससे इस तरह की अव्यवस्था देश में फैल चुकी है वो भविष्य में दुबारा न हो ।
डाॅक्टर होने के नाते मैं इतना जानता हूँँ कि आई.सी.यू. में काम करने वाले डाॅक्टर, नर्स, टेक्नीशियन तथा दूसरे कर्मचारी आम डाॅक्टर, नर्स, टेक्नीशीयन और कर्मचारियों की तुलना में ज्यादा ज्ञान और कौशल रखते है। आज हमारे देश में सीमित आई.सी.यू. है। जिससे आई.सी.यू. में काम करने वाले प्रशिक्षित कर्मचारी भी सीमित है।
मैं यहाँ पर अपनी राय देना चाहता हूँ कि सभी सरकारी एवं निजी अस्पतालों के अपने कार्यरत कर्मचारियों में से कुछ कर्मचारियों को अल्पावधि प्रशिक्षण का व्यवस्था की जाऐं जो वेन्टीलेटर को चला सकें और इन गंभीर मरीजों का कोरोना काल महामारी में इलाज कर सकें। जिससे आज की व्यवस्था को कुछ अच्छा बनाया जा सकें।
कोरोना महामारी में न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को बल्कि देश की दूसरी अन्य सेवाओं की भी पोल खोल दी है। कोरोना महामारी की जो दूसरा रेला आया है उसने तो सरकारी तथा गैर-सरकारी लोगों की नींद उड़ा रखी है। सरकारों के लिए कोरोना महामारी को नियंत्रण करना मुश्किल हो गया है तथा ऐसी हालत में लाॅकडाउन करने के लिए बाध्य हो गयी है।
बढ़ती हुई जनसंख्या पूरे देश की सभी समस्याओं की जड़ है मेरा मानना है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के दुष्परिणामों के बारे में जागरुक करने की आवश्यकता है और हमारे राजनेताओं और योजना अधिकारियों तथा धार्मिक गुरुओं की आवश्यकता है कि वह आम जनता को इन दुष्परिणामों के बारे में अपने अनुयायियों को अपने ढ़ंग से बताऐ।
जैसा हम सब जानते है यदि एक को एक से ज्यादा से भाग दिया जाऐ तो भागफल एक से कम आयेगा। यह सिद्धान्त सभी तरह के संसाधनों पर लागू होता है। यह संदेश लोगों के दिमाग में अच्छी तरह से बैठा देना चाहिए कि बढ़ती हुई जनसंख्या से सभी प्राकृतिक एवं मानव निर्मित संसाधन घट रहे हैं।
एक बच्चा एक परिवार का विचार बढ़ती हुई जनसंख्या को रोकने के लिए एक बहुत प्रभावी उपाय है जिससे अगली पीढ़ी में ही जनसंख्या आधी हो जाती है, और हर पीढ़ी में आधी होती जायेगी। जिससे जनसंख्या निगेटिव ग्रोथ में चली जायेगी। यदि एक बच्चा एक परिवार की तुलना में दो बच्चे एक परिवार और यदि एक लड़की और एक लड़के का सिद्धान्त यदि लागू कर दिया जाऐ तो यह सिद्धान्त न केवल जनसंख्या नियन्त्रण करने के लिए प्रभावी उपाय है बल्कि यह लिंग अनुपात की भी संतुलित रखेगी।
सरकार की स्वैच्छिक परिवार योजना के वह परिणाम नहीं मिल रहे जो कि वांक्षित थे। मेरी प्रधानमंत्री मोदी जी से अपील है कि वह जनसंख्या नियंत्रण के बारे में भी कोई कारगार योजना बनाये। जिससे देश बढ़ती हुई जनसंख्या निजात पा सके। जिससे हमारा देश भी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर सकें और जिससे “वसुधैव कुटुम्बकम्“ की उक्ति चरितार्थ हो सके जिसका मतलब है पूरी दुनिया एक परिवार है।
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संजय ऑर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेंटर, देहरादून के पद्मश्री से सम्मानित डाॅ. बी. के. एस. संजय

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Author: Shakshi Negi
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