उत्तराखंड
आनंद रावत ने एक बार फिर अपने पिता हरीश रावत के नाम लिखा पत्र, देखिए क्या कहे
मानव-वन्य संघर्ष पर आपकी विस्तृत पोस्ट पढ़ी, आपके अनुभव व उत्तराखंड को समझने की शक्ति अतुलनीय है, और बहुत सारगर्भित शब्दों में इस समस्या का निदान भी बता दिया
उत्तराखंड एक मात्र राज्य है जिसमें 6 राष्ट्रीय उद्यान, 7 वन्यजीव अभयारण्य, 4 सरंक्षण रिज़र्व और 1 बायोस्फ़ीयर रिज़र्व है, तो ज़ाहिर है, कि वन्य जीवों की संख्या बढ़ती रहेगी, परन्तु इससे समाज में एक विस्फोटक स्थिति उत्पन्न होती जा रही है । मानव- वन्य जीव संघर्ष बढ़ता जा रहा है।
उत्तराखंड राज्य को बने हुए 22 वर्ष हो गए है, और इन वर्षों में 14 बार उत्तराखंड के बच्चों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा वीरता पुरस्कार मिला है, जिसमें से 9 बार बच्चों को गुलदार या बाघ से लड़ने के लिए मिला है । हर महीने औसतन 3 घटनायें, आदमखोर गुलदार बच्चे, महिलायें व बुज़ुर्ग का शिकार कर रहा है । राज्य के प्रत्येक ज़िले में गुलदार आदमखोर हो रखा है, और लोगों की सहनशक्ति अब जवाब देने लगी है । पौड़ी के पाबो ब्लॉक के सपलोड़ी गाँव में 150 लोगों पर गुलदार को ज़िन्दा जलाने पर मुक़दमा दर्ज हुआ है, और ये ऐसी पहली घटना नहीं है । बाग़ेस्वर में भी लोग मानव-वन्य संघर्ष के मुक़दमे झेल रहे है।
मैं पिछले 7 साल से समाज और राजनेताओं का ध्यान इस विस्फोटक समस्या की तरफ़ आकर्षित करने का प्रयास कर रहा हूँ । समस्या के निदान के लिए गीत-संगीत का सहारा लेते हुए गीत भी लिख दिया, और मानव-वन्य संघर्ष से पीड़ित लोगों की व्यथा को डिजिटल मीडिया का सहारा लेकर समाज के सामने भी रख दिया, लेकिन सरकार की तरफ़ से नाकाफ़ी प्रयास हुए ।आप पहले राजनेता है, जिन्होंने इस समस्या के निदान पर पहल की है । हर बेटे के लिए उसका पिता सूपरमैन होता है , और मुझे लगता है इस समस्या के निदान के लिए मेरे पिताजी “ उत्तराखंड मैन “ साबित होंगे।
ये समस्या सामाजिक-राजनीतिक है, जिसमें सभी चिंतनशील लोगों को साथ आना होगा और पिताजी आप द्रोणाचार्य की भूमिका में रहिए, और आगे से लीड कीजिए और प्रदेश में बहुत अर्जुन और एकलव्य आपके एक आदेश पर सरकारी तन्त्र से आपके सुझावों पर अमल करवाएँगे । मैं अस्वथामा तो हूँ ही, “ अपुन ऐसच नहीं मरेगा “
नोट – हल्द्वानी में फ़तेहपुर रेंज, देहरादून में रानिपोखरी, ऊ सिंह नगर में खटीमा और हरिद्वार में बीएचईएल के जंगल में आदमखोर गुलदार की धमक हो चुकी है, ऐसा नहीं है कि ये केवल पहाड़ों की समस्या है ।
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